हर जगह के नाम के पीछे कुछ न कुछ कहानी जरुर होती है जिसे की बहुत ही कम लोग जानते है ऐसी ही एक जगह है "काला अंब" जहा की पानीपत का तीसरा युद्ध लड़ा गया था। इस जगह का नाम एक ऐसे आम के पेड़ के कारण पड़ा है जिसको काटने पर खून निकलता था।
पानीपत की जमीन पर तीन युद्ध लड़े गए थे, जो सन् 1526, सन् 1556 और सन् 1761 में लड़े गए। पानीपत का तीसरा युद्ध मराठों और मुगलों के बीच लड़ा गया था। मराठों की तरफ से सदाशिवराव भाऊ और मुगलों की ओर से अहमदशाह अब्दाली ने नेतृत्व किया थ
पानीपत की जमीन पर तीन युद्ध लड़े गए थे, जो सन् 1526, सन् 1556 और सन् 1761 में लड़े गए। पानीपत का तीसरा युद्ध मराठों और मुगलों के बीच लड़ा गया था। मराठों की तरफ से सदाशिवराव भाऊ और मुगलों की ओर से अहमदशाह अब्दाली ने नेतृत्व किया थ
पानीपत की लड़ाइयों के बारे में सबने सुना ही है, लेकिन क्या इससे जुड़ी एक खास बात के बारे में आपने सुना है? क्या आपने सुना है उस पेड़ के बारे में जिसे काटने पर उसमें से खून निकलता है? नहीं सुना? आइए आपको बताते हैं उसके बारे में।
इस युद्ध को भारत में मराठा साम्राज्य के अतं के रूप में भी देखा जाता है। इस युद्ध में अहमदशाह अब्दाली की जीत हुई थी।
'काला अंब' के साथ एक अनोखा तथ्य जुडा है। कहा जाता है कि पानीपत के तृतीय युद्ध के दौरान इस जगह पर एक काफी बड़ा आम का पेड़ हुआ करता था। लड़ाई के बाद सैनिक इसके नीचे आराम किया करते थे।
कहा जाता है कि भीषण युद्ध के कारण हुए रक्तपात से इस जगह की मिट्टी लाल हो गई थी, जिसका असर इस आम के पेड़ पर भी पड़ा।
रक्त के कारण आम के पेड़ का रंग काला हो गया और तभी से इस जगह को 'काला अंब' यानी काला आम के नाम से जाना जाने लगा। इस युद्ध में तकरीबन 70,000 मराठा सैनिकों की मौत हो गई थी।
'काला अंब' के साथ एक अनोखा तथ्य जुडा है। कहा जाता है कि पानीपत के तृतीय युद्ध के दौरान इस जगह पर एक काफी बड़ा आम का पेड़ हुआ करता था। लड़ाई के बाद सैनिक इसके नीचे आराम किया करते थे।
कहा जाता है कि भीषण युद्ध के कारण हुए रक्तपात से इस जगह की मिट्टी लाल हो गई थी, जिसका असर इस आम के पेड़ पर भी पड़ा।
रक्त के कारण आम के पेड़ का रंग काला हो गया और तभी से इस जगह को 'काला अंब' यानी काला आम के नाम से जाना जाने लगा। इस युद्ध में तकरीबन 70,000 मराठा सैनिकों की मौत हो गई थी।
एक दिलचस्प तथ्य यह भी है कि इस पेड़ पर लगे आमों को काटने पर उनमें से जो रस निकलता था, उसका रंग रक्त की तरह लाल होता था।
कई वर्षों बाद इस पेड़ के सूखने पर इसे कवि पंडित सुगन चंद रईस ने खरीद लिया। सुगन चंद ने इस पेड़ की लकड़ी से खूबसूरत दरवाजे को बनवाया। यह दरवाजा अब पानीपत म्यूजियम में रखा गया है।