आज हम आपको एक ऐसी जगह की यात्रा पर ले चलते है जहा रखी महाभारत काल की विरासत आज भी पर्यटकों को बहुत आकर्षित करती है। यह जगह है भारत के पूर्वोत्तर में स्थित राज्य नागालैंड का एक शहर दीमापुर जिसको कभी हिडिंबापुर के नाम से जाना जाता था। इस जगह महाभारत काल में हिडिंब राक्षस और उसकी बहन हिडिंबा रहा करते थे। यही पर हिडिंबा ने भीम से विवाह किया था। यहां बहुलता में रहनेवाली डिमाशा जनजाति खुद को भीम की पत्नी हिडिंबा का वंशज मानती है। यहाँ आज भी हिडिंबा का वाड़ा है, जहां राजवाड़ी में स्थित शतरंज की ऊंची-ऊंची गोटियां पर्यटकों को बहुत आकर्षित करती है। इनमे से कुछ अब टूट चुकी है। यहाँ के निवासियों कि मान्यता है कि इन गोटियों से भीम और उसका पुत्र घटोत्कच शतरंज खेलते थे। इस जगह पांडवो ने अपने वनवास का काफी समय व्यतीत किया था।
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हिडिंबा और भीम कि कहानी (Story of Hidimba and Bhima) :
महाभारत की कथा के अनुसार वनवास काल में जब पांडवों का घर षडय़ंत्र के तहत जला दिया गया तो वे वहां से भागकर एक दूसरे वन में गए। जहां हिडिंब राक्षस अपनी बहन हिडिंबा के साथ रहता था। एक दिन हिडिंब ने अपनी बहन हिडिंबा को वन में भोजन की तलाश करने के लिये भेजा। वन में हिडिम्बा को भीम दिखा जो की अपने सोए हुए परिवार की रक्षा के लिए पहरा दे रहा था। राक्षसी हिडिंबा को भीम पसंद आ जाता है और वो उससे प्रेम करने लगती है। इस कारण वो उन सब को जीवित छोड़ कर वापस आ जाती है। लेकिन यह बात उसके भाई हिडिंब को पसंद नहीं आती है और वो पाण्डवों पर हमला कर देता है। लड़ाई में हिडिंब, भीम के हाथो मारा जाता है।
Hidimb and Bhima Image credit wikipedia |
Bhima and Hidimba Image credit wikipedia |
हिडिंबा इसके लिये तैयार हो गई और भीमसेन के साथ आनन्दपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगी। एक वर्ष व्यतीत होने पर हिडिम्बा का पुत्र उत्पन्न हुआ। उत्पन्न होते समय उसके सिर पर केश (उत्कच) न होने के कारण उसका नाम घटोत्कच रखा गया। वह अत्यन्त मायावी निकला और जन्म लेते ही बड़ा हो गया।
हिडिम्बा ने अपने पुत्र को पाण्डवों के पास ले जा कर कहा, “यह आपके भाई की सन्तान है अत: यह आप लोगों की सेवा में रहेगा।” इतना कह कर हिडिम्बा वहां से चली गई। घटोत्कच श्रद्धा से पाण्डवों तथा माता कुन्ती के चरणों में प्रणाम कर के बोला, “अब मुझे मेरे योग्य सेवा बतायें।? उसकी बात सुन कर कुन्ती बोली, “तू मेरे वंश का सबसे बड़ा पौत्र है।
समय आने पर तुम्हारी सेवा अवश्य ली जायेगी।” इस पर घटोत्कच ने कहा, “आप लोग जब भी मुझे स्मरण करेंगे, मैं आप लोगों की सेवा में उपस्थित हो जाउँगा।” इतना कह कर घटोत्कच वर्तमान उत्तराखंड की ओर चला गया। इसी घटोत्कच ने महाभारत के युद्ध में पांडवों की ओर से लड़ते हुए वीरगति पायी थी।
हिडिम्ब का शहर दीमापुर प्राकृतिक रूप से बहुत ख़ूबसूरत होने के साथ-साथ एक ऐतिहासिक शहर भी है। दीमापुर नाम का एक और अर्थ भी निकाला जाता है। यह तीन शब्दों दी, मा और पुर से मिलकर बना है। कचारी भाषा के अनुसार दी का अर्थ होता है नदी, मा का अर्थ होता है महान और पुर का अर्थ होता है शहर।यहां पर कचारी शासनकाल में बने मन्दिर, तालाब और किले देखे जा सकते हैं। इनमें राजपुखूरी, पदमपुखूरी, बामुन पुखूरी और जोरपुखूरी आदि प्रमुख हैं।
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जैसा की हमने आपको ऊपर बताया की हिडिम्बा मूल रूप से नागालैंड की थी पर पुत्र के जन्म के बाद पुत्र को पांडवो को सौप कर वो वर्तमान हिमाचल प्रदेश के मनाली जिले में आ गई थी। कहते है इसी स्थान पर उनका राकक्षी योनि से दैवीय योनि में रूपांतरण हुआ था। मनाली में ही देवी हिडिम्बा का एक मंदिर बना हुआ है जो की कला की द्रष्टि से बहुत उत्कृष्ट है। मंदिर के भीतर एक प्राकृतिक चटटान है जिसे देवी का स्थान माना जाता है। इसी चट्टान पर देवी हिडिम्बा के पैरो के विशाल चिन्ह मौजूद है। चटटान को स्थानीय बोली में 'ढूंग कहते हैं इसलिए देवी को 'ढूंगरी देवी कहा जाता है। देवी को ग्राम देवी के रूप में भी पूजा जाता है। इस चट्टान के ऊपर लकड़ी के मंदिर का निर्माण 1553 में किया गया था।
Hidimba Temple at Manali Image credit Wikipedia |